इस भटकते हुए दिल मे, यादों के सिवा कुछ नहीं ।
रौशनी छीन ली ज़िन्दगी ने, अंधेरों के सिवा कुछ नहीं ।।
वो महफ़िल को अपनी रंगों से सजाते रहे ।
झोली में मेरी ग़मों के सिवा कुछ नहीं ।।
उसको मिली हर ख़ुशी ज़माने की जश्न-ऐ-बज़्म में ।
हिस्से में मेरे चाक दामन के सिवा कुछ नहीं ।।
इस वीराने डगर का मै खुद ही मुहाफ़िज़ हूँ ।
जहाँ तक जाय नज़र पतझड़ के सिवा कुछ नहीं ।।
बहुत तारीफ़ सुनी थी दास्तान-ऐ-गुलिस्ताँ की 'अतहर' ।
जब रूठ जाये दिलबर तो दिल मे दर्द के सिवा कुछ नहीं ।।
शुक्रिया.....
ReplyDeleteसाहब....
शुक्रिया.....
ReplyDeleteसाहब....