Thursday 17 August 2017

क्या लिखना चाहता है ये कवि ?

MAYANK BOKOLIA

मैं कविता लिखना चाहता हूँ "आज़ादी पर"
कोरे कागज़ पर कलम रख उकेरना चाहता हूँ
वो सब जो मैं जी रहा हूँ
वो सब जो मैं देख रहा हूँ
मैं देख रहा हूँ
मेरी कलम हिलने भर से भी इनकार कर रही है
एक अनकही कविता
मेरे सामने गिड़गिड़ा रही है
हाथ जोड़ रही है के मुझे मत गढ़ो
कविता शर्मसार है मुझसे कह रही है
कवितायेँ तो सुन्दर होती है
तुम आज़ादी पर कविताएं मत लिखो

सरकारी अस्पतालों में
सरकार का पैसा अब तक नहीं पहुँचा
राम भरोसे सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा है
दफ्तरों की कुर्सियों पर नरभक्षी बैठें है
कच्ची उम्र का कच्चा मांस
इन्हें नमकीन लगता है
गलती किसी की नहीं है
औकात का मामला है
बिट्टू ,सोनू ,मुन्ना
आज सब पतंगे उड़ा रहे होते
आज़ादी की कहानियाँ सुनते
आज़ादी के 70 साल बाद भी
जो आदमी प्राइवेट में इलाज न करा सके
वो आसमान छूती पतंगे क्या ख़ाक उड़ाएंगे
अच्छा है छोटी उम्र में ही मर गए
अच्छा ही तो है
ज़िन्दा रहते भी ,तो क्या उखाड़ लेते
गरीबी से लड़ते
सिस्टम से लड़ते
या और ज्यादा होता तो
कवितायेँ लिखते

हाथ पकडे प्रेम में ये जोड़ा आखिर
किसको डरा सकता है
इनसे किसको डर है
पकड़े जाने पर जब
इनके गालों पर थप्पड़ पड़ रहे थे
ये आज़ाद भारत में
आज़ादी से प्रेम करने की भीख मांग रहे थे

नई-नई स्कीम आ रही है
कालाधन गुलाबी नोटों की शक्ल ले चूका है
किसान को कॉरपोरेट बनाने का सपना है
जहाँ अब तक बिजली नहीं आई
वहां 4जी पहुंचा दिया गया है
स्मार्ट सिटी ,स्मार्ट फोन,
मामला डिजिटल है
किसानों की आत्महत्या
ये सब एक झूठ है
सब स्मार्ट है सबकुछ ओके है
वी आर रोक्किंग ! यो
मुझे देश का प्रधानमंत्री
किसी बंगाली जादूगर के काले जादू की तरह
जादू की तरक़ीब बांटता दिखता है
मुझे सुनाई दे रहा है, लाल किले से
वो बोल रहा है ,उसके पास है
"हस्तमैथुन से छुटकारे के पच्चीस उपाए"
वो ठग रहा है
आपको ,मुझको ,और इस नक़्शे को
जिसमें की तमाम भाषाएँ रंग-रूप सभ्यता
न जाने क्या क्या बसा हुआ है
उसे ये सब बिखरा-बिखरा दिखता
अलग-थलग नज़र आता है
वो सब "एक" करने पर तुला हुआ है
एक सपनों का भारत
एक आज़ाद भारत ।।

#PenMayank

1 comment:

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