लेखक: भास्कर त्रिपाठी
उसे अईलाइनर पसंद था मुझे काजल.
वो फ्रेंच टोस्ट और कॉफ़ी पे मरती थी और मैं अदरक की चाय पे.
उसे नाईट क्लब्स पसंद थे, मुझे रात की शांत सड़कें.
शांत लोग मरे हुए लगते थे उसे, मुझे शांत रहकर उसे सुनना पसंद था.
लेखक बोरिंग लगते थे उसे, पर मुझे मिनटों देखा करती, जब मैं लिखता.
वो न्यू यॉर्क के टाइम्स स्क्वायर, इस्तांबुल के ग्रैंड बाज़ार में शौपिंग के सपने देखती थी,
मैं असम के चाय के बागों में खोना चाहता था, मसूरी के लाल टिब्बे में बैठकर सूरज डूबता देखना चाहता था.
उसकी बातों में महंगे शहर थे, और मेरा तो पूरा शहर ही वो.
न मैंने उसे बदलना चाहा, न उसने मुझे.
अच्छा चला था इसी तरह सब.
एक अरसा हुआ, दोनों को रिश्ते से आगे बढे.
कुछ दिन पहले उनके साथ ही रहने वाली एक दोस्त से पता चला…
वो अब शांत रहने लगीं हैं,
लिखने लगीं हैं. मसूरी भी घूम आईं, लाल टिब्बे पर अँधेरे तक बैठी रहीं.
आधी रात को अचानक से उनका मन अब, चाय पीने का करता है.
और मैं…
मैं भी अब अकसर कॉफ़ी पी लेता हूँ, किसी महंगी जगह बैठक.
Author: Bhasker Tripathi
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