बात जब कहने लग जाये तो उसका लहजा, उसकी ज़बानी पर शक़ करो,
वो जवान जो संभल जाए सिर्फ कहने पर तो उसकी जवानी पर शक़ करो।
मोहब्बत में जो माँगने लगे वादे, खाने लगे कसमें और देने लगे निशानियाँ,
उस महबूब को, न मानो तुम सिर्फ अपना हमसाया, उसकी निशानी पर शक़ करो।
बहुत आये, जो हुए कलेजा, बहुत हुए जाते है अब भी मेहरबां जो तुम पर,
उन नूर के प्यालों पर, रेशमी शालों पर, उनकी मेहरबानी पर शक़ करो।
कभी उदास हुए जाता हूँ अब भी इस उम्र में भी आकर, शायद नादान हूँ,
गर तुम भी परेशां हो ख़ुद से, उम्र की आदतों से, तो अपनी नादानी पर शक़ करो।
कुछ होता भी है ज़िन्दगी में, जो जावेदानी हो और जिसे मान भी सको तुम?
जो भी शय देने लगे ये दिलासे, बात भरोसे पर आजाए, तो जावेदानी पर शक़ करो।
- अँकुर श्रीवास्तव "श्री"
उम्दा
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