नाम–हरिवंश राय श्रीवास्तव उर्फ़ बच्चन।
जन्म– 27 नवम्बर 1907 बाबुपत्ति गाव। (प्रतापगढ़ जि.)
पिता–प्रताप नारायण श्रीवास्तव।
माता– सरस्वती देवी।
पत्नी– श्यामा बच्चन, उनके मृत्यु के बाद तेजी बच्चन से विवाह।
सन्तान– अमिताभ और अजिताभ।
आरंभिक जीवन:
बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहाबाद से सटे प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबूपट्टी में एक कायस्थ परिवार मे हुआ था। इनके पिता का नाम प्रताप नारायण श्रीवास्तव तथा माता का नाम सरस्वती देवी था। इनको बाल्यकाल में 'बच्चन' कहा जाता था जिसका शाब्दिक अर्थ 'बच्चा' या संतान होता है। बाद में ये इसी नाम से मशहूर हुए। इन्होंने कायस्थ पाठशाला में पहले उर्दू की शिक्षा ली जो उस समय कानून की डिग्री के लिए पहला कदम माना जाता था। उन्होने प्रयाग विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एम. ए. और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की।
१९२६ में १९ वर्ष की उम्र में उनका विवाह श्यामा बच्चन से हुआ जो उस समय १४ वर्ष की थीं। लेकिन १९३६ में श्यामा की टीबी के कारण मृत्यु हो गई। पांच साल बाद १९४१ में बच्चन ने एक पंजाबन तेजी सूरी से विवाह किया जो रंगमंच तथा गायन से जुड़ी हुई थीं। इसी समय उन्होंने 'नीड़ का पुनर्निर्माण' जैसे कविताओं की रचना की। तेजी बच्चन से अमिताभ तथा अजिताभ दो पुत्र हुए। अमिताभ बच्चन एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं। तेजी बच्चन ने हरिवंश राय बच्चन द्वारा शेक्सपियर के अनूदित कई नाटकों में अभिनय का काम किया है।
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव पट्टी में हुआ था। हरिवंश राय ने 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में एम. ए किया व 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता रहे। 1926 में हरिवंश राय की शादी श्यामा से हुई थी जिनका टीबी की लंबी बीमारी के बाद 1936 में निधन हो गया। इस बीच वे नितांत अकेले पड़ गए। 1941 में बच्चन ने तेजी सूरी से शादी की।1952 में पढ़ने के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य/काव्य पर शोध किया। 1955 में कैम्ब्रिज से वापस आने के बाद आपकी भारत सरकार के विदेश मंत्रालय में हिन्दी विशेषज्ञ के रूप में नियुक्त हो गई। आप राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे और 1976 में आपको पद्मभूषण की उपाधी मिली। इससे पहले आपको 'दो चट्टानें' (कविता–संग्रह) के लिए 1968 में साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला था।
1955 में, हरिवंशराय बच्चन दिल्ली में एक्सटर्नल विभाग में शामिल हुए जहा उन्होंने बहोत सालो तक सेवा की और हिंदी भाषा के विकास में भी जुड़े। उन्होंने अपने कई लेखो द्वारा हिंदी भाषा को प्रध्यान्य भी दिया। एक कवी की तरह वो अपनी कविता मधुशाला के लिए प्रसिद्ध है। ओमर खय्याम की ही तरह उन्होंने भी शेकस्पिअर मैकबेथ और ऑथेलो और भगवत गीता के हिंदी अनुवाद के लिए हमेशा याद किये जायेंगे। इसी तरह नवम्बर 1984 में उन्होंने अपनी आखिरी कविता लिखी “एक नवम्बर 1984” जो इंदिरा गाँधी हत्या पर आधारित थी।
1966 में हरिवंशराय बच्चन का भारतीय राज्य सभा के लिए नामनिर्देशित हुआ और इसके तीन साल बाद ही सरकार ने उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया। 1976 में, उनके हिंदी भाषा के विकास में अभूतपूर्व योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया गया.और उनके सफल जीवनकथा, क्या भूलू क्या याद रखु, नीदा का निर्मन फिर, बसेरे से दूर और दशद्वार से सोपान तक के लिए सरस्वती सम्मान दिया गया। इसी के साथ उन्हें नेहरू पुरस्कार लोटस पुरस्कार भी मिले है। अगर हम उन के बारे में प्रस्तावना जान्ने की कोशिश करे तो वन उन्होंने बहोत आसान बताई है। मिटटी का तन, मस्ती का मन, क्षण भर जीवन- यही उनका परिचय है।
प्रेरणा:
'बच्चन' ने इस 'हालावाद' के द्वारा व्यक्ति जीवन की सारी नीरसताओं को स्वीकार करते हुए भी उससे मुँह मोड़ने के बजाय उसका उपयोग करने की, उसकी सारी बुराइयों और कमियों के बावज़ूद जो कुछ मधुर और आनन्दपूर्ण होने के कारण गाह्य है, उसे अपनाने की प्रेरणा दी। उर्दू कवियों ने 'वाइज़' और 'बज़ा', मस्जिद और मज़हब, क़यामत और उक़वा की परवाह न करके दुनिया-ए-रंगों-बू को निकटता से, बार-बार देखने, उसका आस्वादन करने का आमंत्रण दिया है। ख़्याम ने वर्तमान क्षण को जानने, मानने, अपनाने और भली प्रकार इस्तेमाल करने की सीख दी है, और 'बच्चन' के 'हालावाद' का जीवन-दर्शन भी यही है। यह पलायनवाद नहीं है, क्योंकि इसमें वास्तविकता का अस्वीकरण नहीं है, न उससे भागने की परिकल्पना है, प्रत्युत्त वास्तविकता की शुष्कता को अपनी मनस्तरंग से सींचकर हरी-भरी बना देने की सशक्त प्रेरणा है। यह सत्य है कि 'बच्चन' की इन कविताओं में रूमानियत और क़सक़ है, पर हालावाद ग़म ग़लत करने का निमंत्रण है; ग़म से घबराकर ख़ुदक़शी करने का नहीं।
'बच्चन' की कविता इतनी सर्वग्राह्य और सर्वप्रिय है क्योंकि 'बच्चन' की लोकप्रियता मात्र पाठकों के स्वीकरण पर ही आधारित नहीं थी। जो कुछ मिला वह उन्हें अत्यन्त रुचिकर जान पड़ा। वे छायावाद के अतिशय सुकुमार्य और माधुर्य से, उसकी अतीन्द्रिय और अति वैयक्तिक सूक्ष्मता से, उसकी लक्षणात्मक अभिव्यंजना शैली से उकता गये थे। उर्दू की गज़लों में चमक और लचक थी, दिल पर असर करने की ताक़त थी, वह सहजता और संवेदना थी, जो पाठक या श्रोता के मुँह से बरबस यह कहलवा सकती थी कि, मैंने पाया यह कि गोया वह भी मेरे दिल में है। मगर हिन्दी कविता जनमानस और जन रुचि से बहुत दूर थी। 'बच्चन' ने उस समय (1935 से 1940 ई. के व्यापक खिन्नता और अवसाद के युग में) मध्यवर्ग के विक्षुब्ध, वेदनाग्रस्त मन को वाणी का वरदान दिया। उन्होंने सीधी, सादी, जीवन्त भाषा और सर्वग्राह्य, गेय शैली में, छायावाद की लाक्षणिक वक्रता की जगह संवेदनासिक्त अभिधा के माध्यम से, अपनी बात कहना आरम्भ किया और हिन्दी काव्य रसिक सहसा चौंक पड़ा, क्योंकि उसने पाया यह कि वह भी उसके दिल में है।
लेखन:
लिखने का उत्साह बच्चन में विद्यार्थी जीवन से ही था। एम.ए के अध्ययन काल में ही उन्होने फ़ारसी के प्रसिद्ध कवि ‘उमर ख्य्याम की रुबाईयों का हिन्दी में अनुवाद किया, जिसने उन्हे नौजवानों का प्रिय बना दिया था। इसी से उत्साहित हो उन्होंनें उसी शैली में अनेक मौलिक रचनायें लिखीं, जो मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश आदि में संग्रहित हैं। अपनी गेयता, सरलता, सरसता के कारण ये काव्य संग्रह बहुत ही पसंद किये गये। बच्चन आधुनिक काल की वैयक्तिक काव्यधारा के अग्रणी कवि हैं। व्यक्तिप्रधान गीतों के कवि के रूप में उन्होंने आत्मपरकता, निराशा और वेदना को अपने काव्य का विषय बनाया है। उनकी प्रसिद्ध काव्य कृतियों में निशा निमंत्रण, मिलनयामिनी, धार के इधर उधर, आदि भी प्रमुख हैं। उनकी गद्य रचनाओं में - क्या भूलूं क्या याद करूं, टूटी छूटी कडियाँ, नीड का निर्माण फिर फिर आदि प्रमुख हैं। विषय और शैली की दृष्टि से स्वाभाविकता बच्चन की कविताओं का उल्लेखनीय गुण है। उनकी भाषा बोलचाल की भाषा होते हुए भी प्रभावशाली है। लोकधुनों पर आधारित भी उन्होने अनेकों गीत लिखें हैं। सहजता और संवेदनशीलता उनकी कविता का एक विशेष गुण है। यह सहजता और सरल संवेदना कवि की अनुभूति मूलक सत्यता के कारण उपलब्ध हो सकी। बच्चन जी ने बडे साहस, धैर्य और सच्चाई के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज कल्पनाशीलता और जीवन्त बिम्बों से सजाकर सँवारकर अनूठे गीत हिन्दी को दिए। 18 जनवरी सन् 2003 को मुम्बई में आपका निधन हो गया।
कविताएँ:
•तेरा हार। (1932)
•मधुशाला। (1935)
•मधुबाला। (1936)
•मधुकलश। (1937)
•निशा निमन्त्रण। (1938)
•एकांत-संगीत। (1939)
•आकुल अंतर। (1943)
•सतरंगिनी। (1945)
•हलाहल। (1946)
•बंगाल का काल। (1946)
•खादी के फूल। (1948)
•सूत की माला। (1948)
•मिलन यामिनी। (1950)
•प्रणय पत्रिका। (1955)
•धार के इधर उधर। (1957)
•आरती और अंगारे। (1958)
•बुद्ध और नाचघर। (1958)
•त्रिभंगिमा। (1961)
•चार खेमे चौंसठ खूंटे। (1962)
•चिड़िया का घर।
•सबसे पहले।
•काला कौआ।
रचनाएँ:
•युग की उदासी।
•आज मुझसे बोल बादल।
•क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी।
•साथी सो ना कर कुछ बात।
•तब रोक ना पाया मैं आंसू।
•तुम गा दो मेरा गान अमर हो जाये।
•आज तुम मेरे लिये हो।
•मनुष्य की मूर्ति।
•हम ऐसे आज़ाद।
•उस पार न जाने क्या होगा।
•रीढ़ की हड्डी।
•हिंया नहीं कोऊ हमार!
•एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो।
•जीवन का दिन बीत चुका था छाई थी जीवन की रात।
•हो गयी मौन बुलबुले-हिंद।
•गर्म लोहा।
•टूटा हुआ इंसान।
•मौन और शब्द।
•शहीद की माँ।
•क़दम बढाने वाले: कलम चलाने वाले।
•एक नया अनुभव।
•दो पीढियाँ।
•क्यों जीता हूँ।
•कौन मिलनातुर नहीं है?
•है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
•तीर पर कैसे रुकूँ मैं आज लहरों में निमंत्रण!
•क्यों पैदा किया था?
Thank you #HamariBazm for this beautiful Biography of Mr. Bachhan
ReplyDeleteThank you #HamariBazm for this beautiful Biography of Mr. Bachhan
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