Tuesday, 25 July 2017

हमारी बज्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो...!


हमारी बज्म में शम्मा जलाने आ गए हैं वो ।
नए परवाने आ जाएँ, बुलाने आ गए हैं वो ।।

बहुत शातिर है कातिल वो निशां अपने न छोड़ेगा ।
मगर हम भी नहीं हैं, बताने आ गए हैं वो ।।

किनारे पर खड़े हो करके वो आवाज़ देते हैं ।
बड़े अंदाज़ से नैय्या डुबाने आ गए हैं वो ।।

मेरे ख्वाबों खयालों में कभी चुपके से आ कर के ।
मेरी आँखों से नींदों को चुराने आ गए हैं वो ।।

न जाने कब से था मायूस दिल का बागबां दिल मेरा ।गुलो गुलज़ार गुलशन को खिलाने आ गए हैं वो ।।

साभार http://punamsinhajgd.blogspot.com/2014/04/blog-post_17.html?m=1

1 comment:

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    This Ghazal Written by Indian Poet Muhammad Asif Ali.

    अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं
    आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं

    चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ
    महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं

    जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है
    हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं

    छोड़ देते हैं कुछ दिन ये फ़ज़ा का मुक़ाम
    चंद रोज़ इस घर से निकल कर देखते हैं

    लौह-ए-फ़ना से जाना तो फ़ितरत है सभी की
    यार-ए-शातिर पे एतिबार फिर कर कर देखते हैं

    कौन सवार हैं कश्ती में कौन जाता है साहिल पर
    सात-समुंदर से 'आसिफ' गुफ़्तगू कर कर देखते हैं

    ~ मुहम्मद आसिफ अली (भारतीय कवि)

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